कल एक झलक ज़िन्दगी को देखा
वो राहों पे मेरी गुनगुना रही थी।
फिर ढूंढा उसे इधर उधर
वो आँख मिचौली कर मुस्कुरा रही थी।
एक अरसे के बाद आया मुझे करार
वो सेहला के मुझे सुला रही थी।
हम दोनों क्यों ख़फ़ा है एक दूसरे से
मैं उसे और वो मुझे समझा रही थी।
मैंने पूछ लिया - क्यों इतना दर्द दिया कम्बख्त तूने,
वो हँसी और बोली - मैं ज़िन्दगी हूँ पगले
तुझे जीना सीखा रही थी।।
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