Thursday, 11 June 2020

ज़िन्दगी एक कटिंग चाय



चाय के शौकीनों को 
रोक नहीं पाते
ये लेकिन, अगर और
मगर के बहाने।।

ज़िन्दगी भी कभी
रुकती नहीं 
कभी मजबूरी की प्याली
में नचाती है
कभी मशहूरी की प्याली में।।

ये ज़िन्दगी उसे इत्तेफ़ाक़ से
न टकराये होते
उस टपरी पे
कुछ साज़िश उस चाय 
की भी होगी
मेरे महबूबा से मिलाने में।।

हम तो ये मानते है
जनाब
चाय हो या ज़िन्दगी या ईश्क़
बस 
कड़क होनी चाहिए।।

ज़िन्दगी बदलने के लिए
लड़ना पड़ता है
सवारने के लिए मिल-जुल के 
रहना पड़ता है
जैसे चाय की पत्ते और दूध।।

ज़िन्दगी कुछ इस तरह
जीना चाहिए
बात बिगड़े या बने
बस चाय पीना चाहिए।।

फुर्सत महंगे है वरना सुकून तो इतना सस्ता है
लेकिन मील जाते है दोनों
जब हाथ में हो में और मेरा कटिंग चाय ।।





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